ईशा ग्रामोत्सव
के बारे में
2003 में, सद्गुरु तमिलनाडु में घूम रहे थे, और गाँव-गाँव जाकर योग कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे। इन तीन दिवसीय कार्यक्रमों का समापन, लोगों के एक साथ आकर खेल खेलने और ईशा ग्रामोत्सव के फलदायी बीज बोने के साथ हुआ। पहला ग्रामोत्सव 2004 में तमिलनाडु के गोबिचेट्टीपलायम में आयोजित किया गया था, और इसमें विभिन्न गांवों की लगभग 140 टीमों ने 50,000 दर्शकों के सामने खेला था।
सभी उम्र के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए बाहर निकलकर दैनिक आधार पर खेलने के लिए आवश्यक माहौल देकर, व्यक्तियों और समुदायों को रूपांतरित करने वाला यह एक जीवंत और सफल मॉडल है। इसने जाति, पंथ और लिंग की बाधाओं को तोड़ने में मदद की है, युवाओं को व्यसनों से उबरने में सहायता की है, और उन महिलाओं को खेल खेलने की खुशी का अनुभव करने के लिए एक मंच प्रदान किया है जिन्होंने बचपन से कभी नहीं खेला है।

दूरदर्शिता
60% से अधिक ग्रामीण भारत कामकाजी उम्र का है, फिर भी इसे लाभहीन कृषि और गैर-समावेशी विकास के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीण युवा स्वयं को घोर गरीबी से घिरा हुआ पाते हैं और व्यसनों का शिकार हो जाते हैं। ईशा ग्रामोत्सव ग्रामीण भावना को फिर से जागृत करने और ग्रामीण समुदाय में उत्सव के माहौल को वापस लाने का प्रयास है।
खेल और ग्रामीण संस्कृति के विस्तृत प्रदर्शन के माध्यम से, ईशा ग्रामोत्सव ग्रामीणों को व्यसनों से दूर रहने, जाति बाधाओं को तोड़ने, महिलाओं को सशक्त बनाने और लचीली ग्रामीण भावना को पुनर्जीवित करने में मदद करके समाज को बदलने का एक कारगर साधन बन गया है।
ग्रामोत्सव
की अब तक की यात्रा

प्रभाव
2,02,000+
खिलाड़ी
17,000+
टीमें
30,000+
गांव
38,600+
महिला खिलाड़ी
पुरस्कार एवं मान्यताएं





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